डमक डम डमरू रे बाजे (Damak Dam Damroo Re Baje)

डमक डम डमरू रे बाजे,

चन्द्रमा मस्तक पर साजे,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

गले में पड़ी सर्प की माला,

हाथ त्रिशूल कान में बाला,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम ॥


बनकर के नटराज सदाशिव,

अद्भुत कला दिखाए,

डम डम डमरू बजे हाथ में,

ताल से ताल मिलाए,

छान के भांग का गोला,

जटा बिखरा के भोला,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम ॥


देख के रूप अनोखा शिव का,

गौरा मन हर्षाए,

नभ मंडल से देवी देवता,

शिव पे फूल बरसाए,

है कैलाश पे अजब नज़ारे,

बाजे ढोलक झांझ नगाड़े,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम ॥


जैसे जैसे चरण थिरकते,

मन होता मतवाला,

नित गाता है महिमा ‘लख्खा’,

भोले देव निराला,

मगन मन भक्तो का टोला,

झूम के ‘गिरी’ है ये बोला,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम ॥


डमक डम डमरू रे बाजे,

चन्द्रमा मस्तक पर साजे,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

गले में पड़ी सर्प की माला,

हाथ त्रिशूल कान में बाला,

नाचे भोला हर हर हर हर बम,

नाचे भोला हर हर हर हर बम ॥

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वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा (Vaikunth Chaturdashi Ki Katha)

वैकुण्ठ चतुर्दशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव शंकर जी का पूजन करने के लिए काशी आए थे।

मै तो लाई हूँ दाने अनार के (Main To Layi Hu Daane Anaar Ke)

मैं तो लाई हूँ दाने अनार के,
मेरी मैया के नौ दिन बहार के ॥

हे माँ मुझको ऐसा घर दे(He Maa Mujhko Aisa Ghar De)

हे माँ मुझको ऐसा घर दे, जिसमे तुम्हारा मंदिर हो,
ज्योत जगे दिन रैन तुम्हारी, तुम मंदिर के अन्दर हो।

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