जिसको नही है बोध, तो गुरु ज्ञान क्या करे (Jisko Nahi Hai Bodh Guru Gyan Kya Kare)

॥ दोहा ॥

अर्घ कपाले झूलता,

सो दिन करले याद ।

जठरा सेती राखिया,

नाहि पुरुष कर बाद ॥


॥ तो गुरु ज्ञान क्या करे ॥

जिसको नही है बोध,

तो गुरु ज्ञान क्या करे ।

निज रूप को जाना नहीं,

तो पुराण क्या करे ।


घट घट में ब्रह्मज्योत का,

प्रकाश हो रहा ।

मिटा न द्वैतभाव तो,

फिर ध्यान क्या करे ।


जिसको नही है बोध,

तो गुरु ज्ञान क्या करे ।

निज रूप को जाना नहीं,

तो पुराण क्या करे ।


रचना प्रभू की देख के,

ज्ञानी बड़े बड़े ।

पावे ना कोई पार तो,

नादान क्या करे ।


जिसको नही है बोध,

तो गुरु ज्ञान क्या करे ।

निज रूप को जाना नहीं,

तो पुराण क्या करे ।


करके दया दयाल ने,

मानुष जन्म दिया ।

बंदा न करे भजन तो,

भगवान क्या करे ।


जिसको नही है बोध,

तो गुरु ज्ञान क्या करे ।

निज रूप को जाना नहीं,

तो पुराण क्या करे ।


सब जीव जंतुओं में ,

जिसे है नहीं दया ।

‘ब्रह्मानंद’ व्रत नेम,

पुण्य दान क्या करे ।


जिसको नही है बोध,

तो गुरु ज्ञान क्या करे ।

निज रूप को जाना नहीं,

तो पुराण क्या करे ।


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जय जय गौरी ललन (Jai Jai Gouri Lalan )

जय जय गौरी ललन,
जय जय हो गजवदन,

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् (Shiv Panchakshar Stotram)

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनायभस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बरायतस्मै न काराय नमः शिवाय॥1॥

मसान होली की पौराणिक कथा

मसान होली दो दिवसीय त्योहार माना जाता है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत इकट्ठा होकर शिव भजन गाते हैं और नाच-गाकर जीवन-मरण का जश्न मनाते हैं और साथ ही श्मशान की राख को एक-दूसरे पर मलते हैं और हवा में उड़ाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और हर तरफ हर-हर महादेव का नाद सुनाई देता है।

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