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हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत जीवन में शुभता और समृद्धि लाने का एक विशेष अवसर है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के सभी दुख दूर होते हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय का जन्म देवताओं और दैत्यों के युद्ध में दैत्यों का संहार करने के लिए हुआ था। भगवान कार्तिकेय को कुमार, षण्मुख और स्कंद के नामों से भी जाना जाता है। तो आइए इस आलेख में स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व और पूजा विधि विस्तार से जानते हैं।
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास की स्कंद षष्ठी की तिथि 06 दिसंबर दिन शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 07 मिनट पर शुरू होगी और 07 दिसंबर, दिन शनिवार को सुबह 11 बजकर 05 मिनट पर समाप्त होगी।
ब्रह्म मुहूर्त– 04 बजकर 43 मिनट से 05 बजकर 37 मिनट।
प्रातः सन्ध्या– 05 बजकर 10 मिनट से 06 बजकर 30 मिनट।
अभिजित मुहूर्त– 11 बजकर 28 मिनट से 12 बजकर 10 मिनट।
विजय मुहूर्त– 01 बजकर 35 मिनट से 02 बजकर 18 मिनट।
गोधूलि मुहूर्त– 05 बजकर 05 मिनट से 05 बजकर 32 मिनट।
सायाह्न सन्ध्या– 05 बजकर 08 मिनट से 06 बजकर 28 मिनट।
अमृत काल– 06 बजकर 58 मिनट से 08 बजकर 33 मिनट।
निशिता मुहूर्त– 11 बजकर 23 मिनट से अगले दिन 12 बजकर 16 मिनट।
सर्वार्थ सिद्धि योग– 06 बजकर 30 मिनट से 05 बजकर 18 मिनट।
रवि योग– 05 बजकर 18 मिनट से अगली सुबह 06 बजकर 31 मिनट।
स्नान और संकल्प: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान कार्तिकेय का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
भगवान की मूर्ति स्थापना: पूजा स्थल को साफ कर भगवान स्कंद की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
अभिषेक तथा अर्पण: भगवान का गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें। और चंदन, अक्षत, फूल और प्रसाद अर्पित करें।
मंत्र जाप और पाठ: “ॐ स्कन्दाय नमः” मंत्र का जाप करें। अब षष्ठी कवच का पाठ करें।
आरती और प्रार्थना: भगवान की आरती करें, भोग लगाएं और उनसे अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
संध्या में पूजा: शाम को पुनः पूजा और आरती करें।
व्रत का पारण: अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें।
1. स्कंद षष्ठी व्रत के दिन केवल फलाहार करें एवं तन और मन को शुद्ध रखें।
2. इस दिन तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज इत्यादि का सेवन बिल्कुल ना करें।
3. व्रत के पारण वाले दिन भी तामसिक भोजन से बचने की सलाह दी जाती है। क्योंकि, ऐसा करने से आपका व्रत सफल नहीं माना जाता।
4. व्रत के दिन पूजा सूर्योदय के समय ही करनी चाहिए।
स्कंद षष्ठी व्रत को शौर्य और विजय का प्रतीक माना गया है। भगवान कार्तिकेय के आशीर्वाद से भक्तों को संतान सुख, शत्रु विजय और स्वास्थ्य व समृद्धि प्राप्त होती है। खासकर, दक्षिण भारत में यह व्रत बहुत प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से भक्तों को संतान सुख, शत्रु विजय और स्वास्थ्य और धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। दक्षिण भारत में इसे संतान प्राप्ति की कामना से रखा जाता है। इस व्रत से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कार्तिगाई दीपम का पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका समेत विश्व के कई तमिल बहुल देशों में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
जय जय राधा रमण हरी बोल,
जय जय राधा रमण हरि बोल ॥
मुझ पर भी दया की कर दो नज़र,
ऐ श्याम सुंदर. ऐ मुरलीधर ।
एक समय की बात है एक जंगल में एक साहूकार रहता था। उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाती थी। जिस पीपल के पेड़ पर वो जल चढ़ाती थी उस पर पर मां लक्ष्मी का वास था।
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