इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले( Itna to Karna Swami Jab Pran Tan Se Nikle)

इतना तो करना स्वामी,

जब प्राण तन से निकले

गोविन्द नाम लेकर,

फिर प्राण तन से निकले ॥


श्री गंगा जी का तट हो,

यमुना का वंशीवट हो,

मेरा सांवरा निकट हो,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तों करना स्वामी जब प्राण ॥


पीताम्बरी कसी हो,

छवि मन में यह बसी हो,

होठों पे कुछ हसी हो,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तों करना स्वामी जब प्राण ॥


श्री वृन्दावन का स्थल हो,

मेरे मुख में तुलसी दल हो,

विष्णु चरण का जल हो,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तों करना स्वामी जब प्राण ॥


जब कंठ प्राण आवे,

कोई रोग ना सतावे,

यम दर्शना दिखावे,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तो करना स्वामि जब प्राण ॥


उस वक़्त जल्दी आना

नहीं श्याम भूल जाना

राधा को साथ लाना

जब प्राण तन से निकले

इतना तों करना स्वामि जब प्राण ॥


सुधि होवे नाही तन की,

तैयारी हो गमन की,

लकड़ी हो ब्रज के वन की,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तो करना स्वामि जब प्राण ॥


एक भक्त की है अर्जी,

खुदगर्ज की है गरजी,

आगे तुम्हारी मर्जी,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तो करना स्वामि जब प्राण ॥


ये नेक सी अरज है,

मानो तो क्या हरज है,

कुछ आप का फरज है,

जब प्राण तन से निकले,

इतना तो करना स्वामी जब प्राण ॥

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गणगौर व्रत की पौराणिक कथा

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विवाह पंचमी की कथा क्या है

सनातन धर्म में विवाह पंचमी का दिन सबसे पवित्र माना गया है। क्योंकि यह वही दिन है, जब माता सीता और प्रभु श्री राम शादी के बंधन में बंधे थे। पंचांग के अनुसार, विवाह पंचमी का त्योहार हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मनाई जाती है।

आमलकी एकादशी पौराणिक कथा

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी के अलावा आंवला एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन आंवले पेड़ की उत्तपति हुई थी।

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