जिसने भी है सच्चे मन से (Jisne Bhi Hai Sacche Man Se)

जिसने भी है सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया,

खुश होकर के शिव भोले ने,

मनचाहा वरदान दिया,

जिसने भी हैं सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया ॥


सब देवों में देव निराला,

मेरा डमरू वाला है,

सौ बातों की एक बात ये,

भक्तो का रखवाला है,

भक्तो का हर काम प्रभु ने,

पल में तुरत संवार दिया,

खुश होकर के शिव भोले ने,

मनचाहा वरदान दिया,

जिसने भी हैं सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया ॥


देवों को अमृत मंथन में,

हिरे मोती लुटा दिए,

जब विष की बारी आई तो,

उसको कैसे कौन पिए,

नीलकंठ था नाम पड़ा तेरा,

जब तुमने विषपान किया,

खुश होकर के शिव भोले ने,

मनचाहा वरदान दिया,

जिसने भी हैं सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया ॥


भांग धतूरा खाकर भोला,

पर्वत ऊपर वास करे,

संग विराजे पार्वती माँ,

जो भक्तो के कष्ट हरे,

शिवशक्ति के सुमिरण ने,

भक्तो का बेड़ा पार किया,

खुश होकर के शिव भोले ने,

मनचाहा वरदान दिया,

जिसने भी हैं सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया ॥


जिसने भी है सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया,

खुश होकर के शिव भोले ने,

मनचाहा वरदान दिया,

जिसने भी हैं सच्चे मन से,

शिव भोले का ध्यान किया ॥

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जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मानते हैं

सनातन धर्म में हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा को रथ महोत्सव और गुंडिचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये ,
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि,मञ्जुळभाषिणि वेदनुते।

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