मन मोहन मूरत तेरी प्रभु(Mann Mohan Murat Teri Prabhu)

मन मोहन मूरत तेरी प्रभु,

मिल जाओगे आप कहीं ना कहीं ।

यदि चाह हमारे दिल में है,

तूम्‍हे ढूँढ ही लेंगे कहीं ना कहीं ॥


काशी मथुरा वृंदावन में,

या अवधपुरी की गलियन में ।

गंगा यमुना सरयू तट पर,

मिल जाओगे आप कहीं ना कहीं ॥


मन मोहन मूरत तेरी प्रभु,

मन मोहन मूरत तेरी प्रभु ।


घर बार को छोड संयासी हुए,

सबको परित्‍याग उदासी हुए ।

छानेगें वन-वन खा‍क तेरी,

मिल जाओगे आप कहीं ना कहीं ॥

मन मोहन मूरत तेरी प्रभु,

मन मोहन मूरत तेरी प्रभु ।


सब भक्‍त तुम्हीं को घेरेंगे,

तेरे नाम की माला फरेंगे ।

जब आप ही खुद सरमाओगे,

हमें दर्शन दोगे कहीं ना कहीं ॥

मन मोहन मूरत तेरी प्रभु,

मन मोहन मूरत तेरी प्रभु ।


मन मोहन मूरत तेरी प्रभु,

मिल जाओगे आप कहीं ना कहीं ।

यदि चाह हमारे दिल में है,

तूम्‍हे ढूँढ ही लेंगे कहीं ना कहीं ॥

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प्रदोष व्रत और इसके प्रकार

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रघुनन्दन राघव राम हरे (Raghunandan Raghav Ram Hare Dhun)

रघुनन्दन राघव राम हरे
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श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।

वैदिक मंत्र क्यों पढ़ने चाहिए?

वैदिक मंत्रों का पाठ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। ये मंत्र दिव्य शक्तियों से जुड़े होते हैं, जो हमारे जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार करते हैं।

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